देहरादून: कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने परिवर्तन के संकेत दिए हैं। सोशल मीडिया पर लिखी पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि मेरा स्वास्थ्य व राजनैतिक स्वास्थ्य, दोनों स्थान परिवर्तन चाह रहे हैं। अर्थात उत्तराखंड से दिल्ली की ओर प्रस्थान किया जाय। जब भी मैं दिल्ली की सोचता हूं तो बहुत सारे ऐसे साथी जिन्होंने 1980 के बाद मुझे सहारा दिया और दिल्ली से परिचित करवाया, उनकी याद बराबर आती है।
उन्होंने आगे लिखा है कि हमारे साथी सांगले साहब, मोटवानी जी, जयपाल जी, कृष्णमूर्ति जी तो आज हमारे बीच में नहीं हैं, मगर मंगल सिंह नेगी जी, एम.जे. खब्बर जी, डी.के. यादव जी, आई.एस. सिद्धकी आदि आज भी सामाजिक जीवन में सक्रिय हैं। ऐसे समय में जब कर्मचारी संगठनों में कांग्रेस का असर निरन्तर घट रहा है। मेरा मन बार-बार कह रहा है देश भर में फैले हुए अपने पुराने साथियों को जो आज भी सक्रिय हैं उन्हें जोडूं और पुराने संगठन को खड़ा करूं।
इसी तरीके से उत्तराखंड के प्रवासियों बंधुओं में चाहे कुमाऊं हो या गढ़वाल हो, बहुत सारे लोगों ने मुझे रामलीलाओं, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और भी बहुत सारे सामाजिक कार्यक्रमों के माध्यम से मुझे, दिल्ली में रह रहे गढ़वाली और कुमाऊंनी भाईयों से जोड़ा। कमल दा सास्वत नेता थे, एम.डी. भट्ट जी, कामरेड कल्याण सिंह रावत जी, दलीप रावत उनके पिताजी गोविन्द सिंह रावत, डी.एस. चौधरी, मंगल सिंह नेगी, मोहब्बत सिंह राणा, सोबन सिंह रावत जी, महरा जी, ये सब लोग मुझे ऐसी बैठकों में लेकर के जाते थे। बल्कि थोड़ा बहुत गढ़वाल के लोगों के साथ जुड़ाव बढ़ाने में हमारे तत्कालिन सांसद त्रेपन सिंह नेगी जी का भी बड़ा योगदान था।
मैं सत्तारूढ़ पार्टी का सांसद था, वो कांग्रेस के विरोध में थे, तो वो लोगों को बराबर मेरे पास भेजते कि उनसे काम करवा कर के ले आओ। एक समय था, उत्तराखण्ड के प्रवासियों में कांग्रेस का बड़ा दबदबा था, आज वो दबदबा भाजपा और आप का बन गया है। मेरे मन में लालसा है कि एक बार फिर दिल्ली स्थित उत्तराखंड प्रवासियों में कांग्रेस मजबूत करूं। खैर ये विचार हैं, अनंतोगत्वा देखिये मन और मस्तिष्क क्या कहता है! और जिधर दोनों एक साथ कहेंगे उस ओर चल पडेंगे।
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