October 18, 2024

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स्कूल प्रधानाचार्य से बातचीत करते अध्यापक रविंदर सिंह सैणी।

शिक्षक रविन्द्र सिंह सैनी पर हमें नाज है: बच्चों को सिखाने के लिए सीखी गढ़वाली बोली, अब बच्चों के साथ ठेठ गढ़वाली में करते हैं बात, देहरादून जिले में हैं तैनात

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देहरादून: आज जहां गढ़वाली लोग ही अपनी बोली को भूलते जा रहे हैं, वहीं कई ऐसे लोग भी हैं जोकि गैर उत्तराखंडी होने के बावजूद धाराप्रवाह से गढ़वाली में बात करते हैं। एक ऐसे ही हैं शिक्षक रविंदर सिंह सैनी, जिन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए गढ़वाली बोली सीखी और अब गढ़वाली में ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

शिक्षक रविंदर सैणी ने बताया कि मेरी पोस्टिंग चमोली जिले के लंगसी गांव स्थित विद्यालय में बतौर व्यायाम शिक्षक हुई। मैं हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू और गुरुमुखी तो जानता था, पर गढ़वाली बोली नहीं आती थी। लंगसी गांव में बच्चे गढ़वाली में बात करते थे। मुझे उनको पढ़ाने में दिक्कत आने लगी। मुझे लगा कि ठेठ हिन्दी में बच्चे मेरी बात को अच्छी तरह से नहीं समझ पा रहे हैं। मैंने गढ़वाली बोली सीखने का निर्णय लिया। और, मैंने बच्चों से ही गढ़वाली बोलना शुरू किया। अब धाराप्रवाह गढ़वाली में बात कर सकता हूं।

देहरादून के राजकीय इंटर कालेज के रायपुर ब्लाक के बड़ासी में व्यायाम शिक्षक सरदार रविन्द्र सिंह सैनी कहते हैं कि गढ़वाली मीठी और स्नेह की बोली है। चाहता हूं कि बच्चे गढ़वाली में बात करें। मैं भी अपने साथी शिक्षकों और स्कूल में बच्चों के साथ गढ़वाली में बात करता हूं।

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