November 9, 2024

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मूल निवास 1950: उत्तराखंड में फिर एक बड़े आंदोलन की सुगबुगाहट

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देहरादून: उत्तराखंड में एक बार फिर एक बड़े आंदोलन की सुगबुगाहट तेज हो गई है। राज्य निर्माण के आंदोलन के बाद यह पहला ऐसा आंदोलन साबित होता नजर आ रहा है, जिसमें प्रदेश की बहुसंख्य आबादी भावनात्मक रूप से जुड़ रही है। इतिहास गवाह है, जब भी जन की भावनाओं का ज्वार उफान पर आया है तो संघर्ष निर्णायक स्थिति तक पहुंचे हैं। इस बार भी प्रदेश की जनता के दिलों में वही हक उठती दिख रही है। इस बार जन की भावनाओं में मूल निवास 1950 और सशक्त भूकानून की मांग का ज्वार फूटता दिख रहा है। मूल निवास 1950 और सशक्त भूकानून की मांग को लेकर मूल निवास स्वाभिमान महारैली का आयोजन किया जा रहा है। आंदोलन में शरीक होने के लिए प्रदेश की जनता को 24 दिसंबर को देहरादून के परेड मैदान में एकजुट होकर महारैली में प्रतिभाग करने का आह्वान किया गया है।

यह किसी एक दल या संगठन का आंदोलन नहीं, बल्कि इस आंदोलन में जनता की सक्रिय भागीदारी के लिए तमाम संगठन अपील कर रहे हैं। मूल निवास-भू कानून समन्वय संघर्ष समिति से लेकर राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी और अन्य संगठन से जुड़े लोग महारैली में जनता की भागीदारी के लिए निरंतर आह्वान कर रहे हैं। यहां तक कि उत्तराखंडी संस्कृति के ध्वजवाहक नरेंद्र सिंह नेगी ने सोशल मीडिया पर एक अपील भी जारी की है। जनता के नाम उनका संदेश और गीत खूब प्रसारित (वायरल) किया जा रहा है। जिसमें वह कह रहे हैं कि मूल निवासी की बाध्यता को समाप्त किए जाने यहां के मूल निवासियों के समक्ष पहचान का संकट पैदा हो गया है। उन्होंने यह भी कहा कि मूल निवास की जगह लेने वाले स्थाई निवास प्रमाण पत्र के बल पर बाहरी राज्यों के 40 लाख से अधिक लोक राज्य के स्थाई निवासी बन गए हैं।

सरकार को जनभावनाओं के ज्वार का आभास, सीएम धामी हुए सक्रिय
मूल निवास और सशक्त भूकानून को लेकर जनभावनाओं के उमड़ते भाव को सरकार भी पहचानती दिख रही है। कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी यह निर्देश जारी कर चुके हैं कि मूल निवास प्रमाण पत्र होने की दशा में अलग से स्थाई निवास की मांग न की जाए। इसके बाद उन्होंने मूल निवास और स्थाई निवास को लेकर उठ रही बातों और स्थिति के परीक्षण के लिए उच्च स्तरीय समिति के गठन के निर्देश भी जारी किए हैं। प्रदेश के दो सबसे बड़े राजनीतिक दलों की बात की जाए तो कांग्रेस के नेता आंदोलन के पक्ष में खड़े होते दिख रहे हैं। भाजपा भी इसके विरोध में नहीं है, लेकिन सीधे समर्थन की जगह पार्टी के नेता आश्वासन देते दिख रहे हैं। दूसरी तरफ भूकानून समिति की ओर से उपलब्ध कराई गई रिपोर्ट के अध्ययन को भी सरकार ने 05 सदस्यीय समिति का गठन कर दिया है।

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