देहरादून: कोरोनाकाल में लाखों परिवार ऐसे थे जिसमें से किसी न किसी ने अपनों को खोया। संकट की इस घड़ी में जब अपनों ने ही अपनों से दूरी बना ली तो फरिश्ता बनकर डा. जितेंदर सिंह शंटी आए। इस संकट की घड़ी में जितेंदर सिंह शंटी के कारण कई मृतकों को मोक्ष प्राप्त हो सका। बता दें कि जितेंदर सिंह शंटी ने अपनी जान की परवाह किए बिना दिल्ली में 4500 से अधिक शवों का अपने हाथों से अंतिम संस्कार किया। इसके लिए राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद की ओर से उन्हें पदमश्री अवार्ड से सम्मानित भी किया जा चुका है।
शहीद भगत सिंह सेवा दल के अध्यक्ष जितेंदर सिंह शंटी बुधवार को प्रेस क्लब देहरादून पहुंचे और उस समय की कहानी सुनाई तो हर किसी के रोंगटे खड़े हो गए। जितेंदर सिंह शंटी ने बताया कि यह ऐसा भयावह मंजर था जिसे 200 साल तक भुलाया नहीं जा सकता। इस दौरान एक बेटे ने अपने पिता के मृत शरीर को हाथ लगाने से मना कर दिया। कुछ बेटे अपने पिता व मां के अंतिम दर्शन करने के लिए आए लेकिन मां के गले से सोने की चेन व पिता के हाथ से सोने की अंगूठी वे खाली पेपर पर अंगूठा लगवाकर चले गए।
उन्होंने अपनों को कंधा देने की जहमत तक नहीं उठाई। यदि दिल्ली प्रशासन चाहता तो सड़कों पर लाशें नहीं पड़ी रहती, आक्सीजन के बिना किसी की मौत नहीं होती, लेकिन सरकार चुपचाप तमाशा देख रही थी। जितेंदर सिंह शंटी ने बताया कि मुझे भी कई लोगों ने डराया, लेकिन मैने दिल में ठान लिया था कि यदि मौत आए तो श्मशान घाट पर आए और दूसरों की सेवा करते हुए आए। अस्पताल के मालिकों को भी आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा कि देश जल रहा था, लेकिन अस्पताल के मालिक पैसे बटाेरने में लगे हुए थे। दो हजार का इंजेक्शन दो लाख में दिया गया, आक्सीजन ब्लैक में बिक रही थी। इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है कि ऐसे अस्पतालों का आडिट करवाया जाए और जो दोषी पाया जाता है, उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करके जेलों में डाला जाए।
यह हैं जितेंदर सिंह शंटी
शहीद भगत सिंह सेवा दल के अध्यक्ष जितेंदर सिंह शंटी ने देश भर में निशुल्क एंबुलेस सेवा प्रदान करने का अभियान चलाया हुआ है। वह अज्ञात शवों का निशुल्क अंतिम संस्कार करते हैं। कोरोनाकाल के दौरान उन्होंने 4500 से अधिक शवों का निशुल्क अंतिम संस्कार किया। उनके ओर से देश भर में निशुल्क एंबुलेंस सेवा शुरू की गई है। देश भर में विख्यात हो चुके शंटी को राष्ट्रपति के हाथों पदमश्री अवार्ड भी मिल चुका है। पांच अप्रैल को उत्तराखंड के राज्यपाल गुरमीत सिंह (ले.ज.से.) ने उन्हें सम्मानित किया। जितेंदर सिंह अब उत्तराखंड में भी सेवा देने जा रहे हैं।
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