September 7, 2024

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उत्तराखंड ने रचा इतिहास, समान नागरिक संहिता विधेयक पास करने वाला पहला राज्य बना

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देहरादून: उत्तराखंड का नाम बुधवार 07 फरवरी 2024 को देश के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज हो गया है। उत्तराखंड देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) के विधेयक को विधानसभा से पारित करा लिया है। विधेयक को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए मुख्य्मंत्री पुष्कर सिंह धामी, उनकी टीम और सरकार के विभिन्न अंगों ने अथक प्रयास किए। जो अब सार्थक रूप भी ले चुके हैं। अब सरकार की प्राथमिकता होगी कि शीघ्र से शीघ्र इस अधिनियम के अनुरूप कार्य करने के लिए विस्तृत रूल्स एन्ड मैनुअल्स बनाए जाएं। ताकि समान नागरिक संहिता के उद्देश्यों की धरातलीय पूर्ति की जा सके।

समान नागरिक संहिता विधेयक पारित करते मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी।

हालांकि, इससे पहले सदन में पक्ष-विपक्ष के विधायकों ने विधेयक पर अपनी-अपनी राय रखी। सत्र के दौरान कई बार तीखी बहस की नौबत भी आई। विपक्ष के विधायकों ने समान नागरिक संहिता में संशोधन के बिंदु भी रखे। इसे सीधे पास किए जाने की जगह पहले प्रवर समिति को भेजे जाने की पैरवी भी गई है। दिनभर कई दौर की कश्मकश के बाद आखिरकार शाम को विधेयक को सदन ने मंजूरी प्रदान कर दी।

उत्तराखंड में बहु विवाह अमान्य, तीन तलाक को जगह नहीं

विधेयक का पहला खंड विवाह और विवाह-विच्छेद पर केंद्रित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि बहु विवाह व बाल विवाह अमान्य होंगे। विवाह के समय लड़की की न्यूनतम आयु 18 व लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष होनी चाहिए। साथ ही विवाह के पक्षकार निषेध रिश्तेदारी की डिग्रियों के भीतर न आते हों। इस डिग्री में सगे रिश्तेदारों से संबंध निषेध किए गए हैं। संहिता में विवाह और विवाह विच्छेद (डिवोर्स) का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। 26 मार्च 2010 के बाद हुए विवाह का पंजीकरण अनिवार्य होगा। पंजीकरण न कराने की स्थिति में भी विवाह मान्य रहेगा, लेकिन पंजीकरण न कराने पर दंड दिया जाएगा। यह दंड अधिकतम 03 तीन माह तक की कारावास और अधिकतम 25 हजार तक के जुर्माने के रूप में हो सकता है।

विधिक प्रक्रिया से ही होगा विवाह विच्छेद

सभी धर्मों के लिए दांपत्य अधिकारों का उल्लेख भी विधेयक में किया गया है। साथ ही न्यायिक रूप से अलगाव के विषय में व्यवस्था की गई है। यह भी बताया गया है कि किस स्थिति में विवाह को शून्य विवाह माना जाएगा। विधेयक में विवाह विच्छेद के संबंध में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। कोई भी इस संहिता में उल्लिखित प्रावधानों के अलावा किसी अन्य प्रकार से विवाह विच्छेद नहीं कर सकेगा। जिसका एक सीधा मतलब यह भी है कि तीन तलाक जैसी व्यवस्था को जगह नहीं मिलेगी। नई व्यवस्था से एकतरफा मनमाने तलाक की प्रथा पर रोक लग जाएगी।

छह माह से तीन साल तक की सजा

विवाह विच्छेद के संबंध में याचिका लंबित रहने पर भरण-पोषण और बच्चों की अभिरक्षा के संबंध में प्रावधान किए गए हैं। संहिता में उल्लिखित धाराओं का उल्लंघन करने पर छह माह तक का कारावास व 50 हजार जुर्माने की व्यवस्था की गई है। विवाह-विच्छेद के मामलों में तीन वर्ष तक का कारावास होगा। पुनर्विवाह के लिए यदि कोई तय नियम का उल्लंघन करता है तो वह एक लाख रुपये तक का जुर्माना व छह माह तक के कारावास का भागी होगा।

संपत्ति के लिए नहीं झगड़ेंगे उत्तराधिकारी, हिस्सेदारी की गई तय, बेटा-बेटी भी बराबर

संपत्ति का विवाद परिवार में तब गहरा जाता है, जब किसी मुखिया की मृत्यु बिना वसीयत किए ही हो जाती है। परिवार के सदस्य ही अपने हिस्से और उसके अंश को लेकर आमने-सामने हो जाते हैं। इस स्थिति में महिलाओं की सर्वाधिक उपेक्षा की जाती है। क्योंकि, उन्हें पराई अमानत मानने का चलन रहा है। इस रीति को भी समान नागरिक संहिता में तोड़ने का प्रयास किया गया है। दूसरी तरफ प्रदेश की न्यायलयों में संपत्ति के बंटवारे के वादों की भरमार है। नागरिकों को विवाद की इस स्थिति से बचाने और हिस्सेदारी को लेकर पारदर्शिता के लिए समान नागरिक संहिता विधेयक में तमाम नियम बनाए गए हैं। खासकर उत्तराधिकारियों की श्रेणियां भी तय की गई हैं। साथ ही बताया गया है कि प्रत्येक श्रेणी में उत्तराधिकारियों के मध्य संपत्ति/संपदा का बंटवारा किस तरह किया जाएगा। इसके अलावा दान और अधिकार को लेकर वाद दायर करने को लेकर भी व्यवस्था बनाई गई है।
विधेयक के भाग दो में उत्तराधिकार के अध्याय एक के मुताबिक श्रेणी एक में पति/पत्नी, बच्चे, मृत बच्चों के बच्चे व उनके पति/पत्नी आदि को शामिल किया गया है। इस श्रेणी में प्रत्येक जीवित उत्तराधिकारी को संपत्ति का एक अंश मिलेगा। यदि पति/पत्नी के मध्य एक-एक अंश बांटा गया है और इनमें से किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसका भाग जीवित पति या पत्नी को मिल जाएगा। यही स्थिति माता-पिता के रूप में भी लागू होगी।
यदि श्रेणी एक का कोई उत्तराधिकारी नहीं है तो दूसरी श्रेणी में दर्ज नातेदार सौतेले माता-पिता, भाई-बहन, उनके बच्चे, बच्चों के पति-पत्नी, पिता के भाई-बहन, मृत भाई-बहन के बच्चों, दादा-दादी, नाना-नानी आदि को शामिल किया गया है। इस श्रेणी में भी समान अंश में संपदा का बंटवारा किया जाएगा। तीसरी श्रेणी में अन्य नातेदारों (श्रेणी एक व दो के अलावा) को शामिल किया गया है। वहीं, चौथी श्रेणी से मतलब उस स्थिति से है, जहां किसी भी श्रेणी के उत्तराधिकारी न हों। ऐसी संपत्ति पर निर्णय सरकार लेगी।

गर्भस्थ शिशु को भी अधिकार

गर्भस्थ शिशु को भी वही अधिकार दिया है, जो वसीयत रहित व्यक्ति के जीवनकाल में जीवित बच्चे को है। ऐसे गर्भस्थ शुशु को संबंधित व्यक्ति की मृत्यु से ही उत्तराधिकारी माना जाएगा। यदि किसी विधवा या विधुर ने वसीयत रहित व्यक्ति के जीवनकाल में ही पुनर्विवाह कर लिया हो, वह मृतक की संपदा में उत्तराधिकारी नहीं होगा।
इन्हें उत्तराधिकार का हक नहीं
-जिस व्यक्ति ने संपत्ति के लालच में हत्या की थी या हत्या का प्रयत्न किया था।
-यदि किसी को बेदखल किया गया हो या संपत्ति से वंचित किया गया तो तो उसे वैसे ही माना जाएगा, जैसे वह वसीयत रहित व्यक्ति की मृत्यु से पूर्व ही मृत हो चुका हो।
रोग, शारीरिक या मानसिक क्षमता में भी मिलेगा संपत्ति का अधिकार
इस आधार पर किसी भी व्यक्ति को उत्तराधिकारी के हक से वंचित नहीं किया जा सकेगा कि वह किसी बीमारी, शारीरिक व मानसिक क्षमता से ग्रसित है या किसी विकार से घिरा है। ऐसा व्यक्ति भी कानूनी रूप से संबंधित संपदा का अधिकारी माना जाएगा।

बल व छल से कराई गई वसीयत मानी जाएगी शून्य
विधेयक के अध्याय दो में वसीयत करने के अधिकार व उसकी वैधता पर स्थिति साफ की गई है। व्यव्यस्था दी गई है कि ऐसे मूक-बधिर या अंधे व्यक्ति भी वसीयत कर सकते हैं, जो यह समझने में सक्षम हों कि वह क्या कर रहे हैं। मामूली व अस्थाई दिमागी रोग वाला व्यक्ति स्वस्थ स्थिति के दौरान वसीयत कर सकता है। दूसरी तरफ छल, बल या अतियाचना की स्थिति में कराई गई वसीयत को शून्य माना जाएगा। इसके अलावा डरा-धमकाकर व किसी भी तरह के दबाव को बनाकर कराई गई वसीयत भी शून्य मानी जाएगी। यदि किसी व्यक्ति ने यह कहकर अपने पक्ष में वसीयत कराई है कि उसका पुत्र कर्तव्य विरुद्ध कृत्य करता या उसके एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गई है, तो इस तरह की वसीयत भी अवैध मानी जाएगी।

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