देहरादून: उत्तराखंड के लाल कैप्टन दीपक के अंदर देशभक्ति का जज्बा कूट-कूटकर भरा हुआ था। उनकी दिली इच्छा थी कि वह जम्मू-कश्मीर जाएं और दुश्मनों का सफाया करें। शायद नियती को कुछ और ही मंजूर था और जम्मू-कश्मीर के डोडा में आतंकवादियों से मुठभेड़ के दौरान 25 वर्षीय कैप्टन दीपक बलिदान हो गए।
कैप्टन दीपक ने अपनी आखिरी काल में मां से सच छिपाया था। उन्होंने कहा था कि वह अपनी यूनिट के बेस पर ‘आराम’ करने जा रहे हैं। जबकि मंगलवार रात वह एक मिशन के लिए तैयार हो रहे थे। उत्तराखंड पुलिस के सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर बलिदानी के पिता महेश सिंह ने कहा कि वह जम्मू-कश्मीर से वीडियो काल पर हमसे बात करता था और हमेशा अपनी मां से झूठ बोलता था। कहता था, ‘मां, सब ठीक है, शांति है, मैं आराम कर रहा हूं’। अक्सर, वह अपनी वर्दी की शर्ट उतार लेता था। इसके बाद बात करता था। काल पर अपनी बनियान पहने हुए अपनी मां को यह भरोसा दिलाने का प्रयास करता था कि वह आराम कर रहे हैं। हालांकि, एक पूर्व पुलिसकर्मी होने की वजह से मैं उसके जूते और पतलून को देख लेता था, जो इस बात के संकेत थे कि वह ड्यूटी पर है। 2020 में सिग्नल में कमीशन प्राप्त कैप्टन दीपक वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय राइफल्स के साथ दो साल की प्रतिनियुक्ति पर थे।
भारतीय सेना (48 राष्ट्रीय राइफल्स) के बलिदानी कैप्टन दीपक सिंह को नम आंखों से अंतिम विदाई दी गई। गुरुवार को पूरा देश जहां 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, वहीं बलिदानी कैप्टन दीपक का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटा जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचा। यहां पर प्रदेश के राज्यपाल ले. जनरल गुरमीत सिंह (सेनि), मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अलावा सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने बलिदानी के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने बलिदानी के पिता महेश सिंह से मुलाकात कर उन्हें ढांढस बंधाया तथा राज्य सरकार के स्तर से हर संभव मदद का भरोसा दिया।
जौलीग्रांट एयरपोर्ट के बाद बलिदानी कैप्टन दीपक के पार्थिव शरीर अंतिम दर्शनों के लिए उनके कुंआवाला स्थित विंडलास रिवर वैली आवास पर लाया गया। तिरंगे में लिपटे अपने लाडले का पार्थिव शरीर देख स्वजन बिलख पड़े। बलिदानी की मां चंपा देवी बेसुध हो गई। पिता महेश सिंह की आंखें भी नम थी। बलिदानी की बड़ी बहने मनीषा व ज्योति भी ताबूत में रखे अपने इकलौते भाई के तिरंगे में लिपटे पार्थिव शरीर से लिपट पड़ी। लोगों ने बामुश्किल उन्हें संभाला। स्वजन की चित्कार व विलाप देखकर वहां मौजूद हर किसी की आंखें नम हो गई। अंतिम दर्शन के बाद बलिदानी की अंतिम यात्रा हरिद्वार के लिए निकली। शहीद की अंतिम यात्रा में लोगों की भारी भीड़ उमड़ी। सभी ने बलिदानी कैप्टन दीपक अमर रहे के नारे लगाकर नम आंखों से उन्हें अंतिम विदाई दी। हरिद्वार में सैन्य सम्मान के साथ बलिदानी कैप्टन का अंतिम संस्कार किया गया।
दो बहनों के इकलौता भाई थे दीपक
कैप्टन दीपक ने अपने माता-पिता से वादा किया था कि राष्ट्रीय राइफल्स में उनका कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह शादी कर लेंगे। वह दो बहनों के इकलौता भाई थे। उनकी मौत की खबर आने से ठीक पहले घर में जश्न का माहौल था। उनकी बड़ी बहन ने बेटे को जन्म दिया था। परिवार दीपक की शादी की योजना बना रहा था, लेकिन उन्होंने अपना आरआर कार्यकाल पूरा करने के लिए एक और साल इंतजार करने के लिए कहा था।
आंसू नहीं रोक पाए पिता
बलिदानी दीपक के पिता बेटे का पार्थिव शरीर देख खुद के आंसू नहीं रोक पाए। उन्होंने खुद से वादा किया था कि ना ही अभी तक रोया हूं और न रोऊंगा। मैने ठान लिया है कि मैं कमज़ोर नहीं होऊंगा। पर जैसे ही वह पुष्पचक्र लेकर बेटे को श्रद्धाजंलि देने के लिए आगे बढ़े, खुद को रोने से रोक नहीं पाए। अंतिम सलामी देने के बाद वह जमीन पर बैठकर रोने लगे। उनकी हालत देखकर वहां मौजूद हर किसी के आंसू छलक आए।
छुट्टी पर दून आए और साथ खुखरी ले गए
कैप्टन दीपक के पिता बताते हैं कि एक बार जब वह छुट्टी पर आया था, तब वह मुझे देहरादून स्थित कैंट एरिया में लेकर गया। वहां कैंट एरिया में खुखरियां मिलती हैं। उसने वहां से वह खुखरी ख़रीदी और मुझे कहा, पापा यह खुखरी मैं इसलिए ले रहा हूं, अगर मेरी गन की कभी गोलियां ख़त्म हो गई तो दुश्मन को मैं इसी से ढेर कर दूंगा। यहां से जाने बाद से वह परिवार वालों को भी वह खुखरी के साथ वाली अपनी फ़ोटो भेजता था। फ़ोटो में उसके एक तरफ़ बंदूक और दूसरी तरफ़ उसकी वही खुख़री लटकी होती थी।
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