हल्द्वानी : अगर दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी मंजिल दूर नहीं है। पिता ने बड़ी बेटी को पुलिस में जाने की राह दिखाई तो बाकी बहनों ने भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक ही परिवार की चार बहनें आज उत्तराखंड पुलिस की शान हैं। मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के मानिला निवासी इन बहनों का मायका कैंट एरिया बरेली में है। इनके पिता स्व. रूप सिंह 1991 में आर्मी से सेवानिवृत्त हुए थे।
मां लीला घुघत्याल गृहिणी हैं। एक बेटा और पांच बेटियों में चार बहनें उत्तराखंड पुलिस में सेवा दे रही हैं। पिता ने सेवानिवृत्ति के बाद से ही बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने की ठान ली। बेटियों ने भी पिता के सपने को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बड़ी बेटी जानकी बोरा बीएससी की पढ़ाई के दौरान वर्ष 1997 में पुलिस में बतौर सिपाही भर्ती हो गईं। तीसरे नंबर की बेटी कुमकुम धानिक वर्ष 2002 में सिपाही बनीं।
इनके बाद वर्ष 2005 में अंजलि भंडारी सिपाही बन गई। सबसे छोटी गोल्डी घुघत्याल वर्ष 2015 में सीधे दारोगा बनीं। इस समय जानकी नरेंद्र नगर में हेड कांस्टेबल की ट्रेनिंग ले रही हैं। अंजलि पीएसी देहरादून में हेड कांस्टेबल हैं। वहीं, कुमकुम डीआइजी कैंप कार्यालय हल्द्वानी में दारोगा व गोल्डी ऊधमसिंह नगर में दारोगा पद पर तैनात हैं। दूसरे नंबर की बहन रेखा बासीला ने नौकरी की नहीं की। इन बेटियों ने समाज में एक नजीर पेश की है।
पिता ने हमेशा बढ़ाया मनोबल
आर्मी से सेवानिवृत्त रूप सिंह की सोच अन्य लोगों से अलग थी। लोग जहां अपनी बेटियों को सूट में रहने की सलाह देते थे। वहीं रूप सिंह ने बेटियों को कभी सूट नहीं पहनने दिया। दारोगा कुमकुम बताती हैं कि पिता मानते थे बेटियां सूट पहनेंगी तो अपने को कमजोर समझ सकती हैं। सभी बहनें हमेशा ट्रैक सूट या अन्य कपड़े पहनकर रहती थीं। पिता बेटियों का हमेशा मनोबल बढ़ाने का प्रयास करते थे। जिसके परिणाम सकारात्मक रहे।
एक दूसरे को देख आगे बढ़ने की ठानी
दारोगा कुमकुम का कहना है कि पिता आर्मी से सेवानिवृत्त होकर आए। तब मानदेय बहुत कम था। उनके परिवार की स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी। परिवार की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने व अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए सभी बहनों ने एक-दूसरे को देखकर आगे बढ़ने की ठान ली।
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