गढ़वाल: उत्तराखंड को ऐसे ही देवों की भूमि नहीं कहा जाता है। पाण्डवों से लेकर कई राजाओं ने तप करने के लिए इस महान भूमि को चुना है। ध्यान लगाने के लिए महात्मा इस जगह को उपयुक्त मानते हैं और आते हैं। उत्तरकाशी में हुई एक घटना चर्चा का विषय बनी रही। यहां सरुताल से यात्रा कर गत शुक्रवार शाम को देव डोलियां सरनौल गांव में पहुंची। गांव में शनिवार को देव डोलियों की विदाई के दौरान देवता के थान के पास नाग देवता प्रकट हो गए। नाग को देखते ही ग्रामीणों पर पांडव पश्वा अवतरित हुए और पांडव पश्वा ने नाग को उठाया। फिर पांडव पश्वा देव डोली से भेंट कराने के बाद नाग को गले में डाल कर नृत्य करने लगे। बाद में देवता के पश्वा ने नाग को हाथ में लेकर सभी को नाग देवता के रूप में आशीर्वाद दिया और दूध पिलाने के बाद नाग को मन्दिर परिसर के निकट जंगल में ही छोड़ दिया। यह घटनाक्रम रवाईं घाटी में चर्चा का विषय बना हुआ है।
दरअसल हुआ यूं कि उत्तरकाशी जनपद के रवाईं घाटी के सुदूरवर्ती सरनौल गांव शुक्रवार की रात को देव डोली रेणुका देवी, जमदग्नि ऋषि की डोली सरुताल बुग्याल की यात्रा कर लौटी। शनिवार को जमदग्नि ऋषि की डोली ने थान गांव लौटना था। इसके लिए सरनौल गांव में धार्मिक आयोजन हुआ। सरनौल गांव में देवता की थाती यानी देवस्थल पर पहुंचते ही देव डोली के सामने करीब पांच फीट लम्बा नाग देवता दिखाई दिया। नाग के दिखने पर ग्रामीणों में हड़कंप मच गया। परंतु इसी दौरान कुछ ग्रामीणों पर पांडव पश्वा अवतरित हुए। जिन्होंने नाग को उठाकर पहले देव डोली से भेंट कराया और फिर अपने गले में डाल दिया। यह नजारा देख ग्रामीण हैरान रह गए। देवता के पश्वा ने नाग को नागराज देवता का रूप बताया। तो सभी ने नागराज देवता के रूप में नाग को प्रणाम किया।
इसके बाद पांडव पश्वा ने नाग को हाथ में लेकर ग्रामीणों को आशीर्वाद दिया। फिर नाग को मंदिर परिसर के निकट जंगल में विदा कर दिया है। सरनौल गांव के ग्रामीणों ने कहा कि पांडव पश्वा पहले भी ऐसा कर चुके हैं। गांव में अगर किसी के घर आंगन में नाग दिख जाता है तो पांडव पश्वा को बुलाया जाता है। पांडव पश्वा पहचान लेते हैं कि नागराजा देवता का प्रतीक है कि नहीं। अगर नाग राजा देवता का प्रतीक है तो पांडव पश्वा उसे पकड़ लेते हैं। फिर पूजा अर्चना के बाद नाग को जंगल में छोड़ा जाता है।
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